विवेक काटजू

विवेक काटजू

पूर्व राजदूत

सामरिक और रक्षा अनुसंधान परिषद (CSDR) आपके लिए भारत की विदेश नीति पर हमारा पाठ्यक्रम हिन्दी भाषा में लेकर आया है। यह कोर्स भारत एवं विदेशों के स्नातक के छात्रों , शोधकर्ताओं एवं मिड- करिअर पेशेवरों के लिए उपयुक्त है। यह कोर्स उच्चस्तरीय तथा बहु-मॉड्यूल कार्यक्रम है। यह प्रतिभागियों को वर्तमान बहु-राजनीतिक स्थितियों की ओर भारत की विदेश नीति प्रतिक्रियाओं का पूर्ण विश्लेषण करने में सक्षम बनाएगा। इन प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण इतिहास और अनुभवजन्य साक्ष्यों द्वारा किया जाएगा। इस कोर्स का नेतृत्व अनुभवी पूर्व राजदूत विवेक काटजू द्वारा किया जाएगा। इस कोर्स में विवेक काटजू, भारत की विदेश नीति निर्माण के प्रसिद्ध अपारदर्शी संस्थागत और नौकरशाही तंत्र को सरल और स्पष्ट तरीके से आपके समक्ष रखेंगे।

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    यह सत्र भारतीय विदेश नीति की संरचना और संस्थानों , विशेष करके विदेश मंत्रालय पर केंद्रित होगा। इस संदर्भ में, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका एवं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSCS) और इनका वर्तमान विदेश नीति पर प्रभाव भी चर्चा की जाएगी। प्रशिक्षक विदेश मंत्रालय की उत्पत्ति और उसकी वर्तमान रूपरेखा के बारे में प्रकाश डालेंगे। इस प्रश्न पर भी चर्चा होगी की क्या विदेश मंत्रालय मई उचित परस्पर तालमेल है? विदेश नीति को आकार देने वाले अन्य स्रोत एवं उनके कार्यान्वयन भी शामिल होंगे। विदेश नीति और कूटनीति पर भी विचार विमर्श किया जाएगा।


     

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    इस सत्र का आधार भारतीय विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों को समझना है। विदेश नीति में गुट – निरपेक्षता का महत्व और उसके बाद के विकास को समझने के साथ- साथ सामरिक स्वायत्तता, बहुपक्षीयता, सामरिक संयम जैसे विषयों पर चर्चा होगी। प्रशिक्षक भारत की विदेश नीति पर 1998 में भारत के सार्वजनिक रूप से परमाणु हथियार-सम्पन्न राष्ट्र बनने के प्रभाव का भी आकलन करेंगे।भारत वैश्विक संकट के दौरान अपने गैर-हस्तक्षेपवादी रवैये के लिए जाना जाता है। यह सत्र इस रूख के मूल कारण एवं इसकी दीर्घकालीन स्थिरता का आकलन करेगा। भारत के सामरिक संयम को भारत की पाकिस्तान नीति के संदर्भ में समझने की कोशिश की जाएगी। इस चर्चा का अन्य उप-विषय उन घटनाक्रमों पर आधारित है, जिसने भारत द्वारा परमाणु संयम का पालन एवं ‘पहले उपयोग नहीं’ की नीतियों को निर्धारित किया।


     

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    प्रशिक्षक इस सत्र की शुरुआत निकटतम पड़ोस और विस्तारित पड़ोस के बीच के अन्तर से करेंगे। इस सत्र की परिकल्पना तात्कालिक पड़ोस में भारत की नीति और उसके कार्य को समझने के लिए की गई है। पड़ोस के देशों के साथ बहुपक्षीय संबंधों के साथ-साथ भारत ने बहुपक्षी संस्थाओं पर भी जोए दिया है। यह कहाँ तक सफल हुई है? इस संदर्भ में SAARC और BIMSTEC के भविष्य क्या है? इस सब विषयों पर चर्चा होगी।

    भारत के निकटतम पड़ोस में बाहरी शक्तियों की चुनौतियों पर चर्चा होगी। हिन्द -प्रशांत क्षेत्र की ओर भारत के नए दृष्टिकोण एवं एशियाई क्षेत्रीय रणनीति पर इसके प्रभाव का आकलन किया जाएगा। भारत के विस्तारित पड़ोस के संदर्भ में, पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के राजनयिक व्यवहार पर चर्चा करेंगे और इनसे जुड़े अवसरों और चुनौतियों, दोनों को समझा जाएगा।


     

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    यह सत्र भारत और महाशक्ति प्रतिद्वंद्विता को समर्पित है। यह विशेष रूप से शीत युद्ध के बाद भारत के नीति विकल्पों पर केंद्रित होगा। भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों के साथ अपने संबंध को सुदृढ़ करने के तरीके समझे जाएंगे। चीन की समस्या को दूर करने के लिए इन दोनों देशों के साथ कूटनीतिक रूप से अपने हितों को अग्रसर करने में भारत की क्षमताओं पर विचार किया जाएगा। प्रशिक्षक हाल के रूस-यूक्रेन युद्ध के माध्यम से भारत की स्ट्रटीजिक मनोएउवएरिनग का उपयोग करते हुए रणनीतिक युद्धाभ्यास के बारे में विस्तार से बताएंगे।


     

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    यह सत्र भारत -चीन द्विपक्षीय संबंधों पर केंद्रित होगा। भारत -चीन के संबंध के विकास को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से रेखांकित किया जाएगा। इस सत्र में डोकलाम और गालवान जैसी घटनाओं ने भारत के रणनीतिक विचारों को कैसे प्रभावित किया है, इस पर विचार विमर्श किया जाएगा। भारत ने चीन के साथ बातचीत करने के लिए कूटनीति पर भरोसा किया है, इस सत्र में विस्तार से बताया जाएगा कि कौन से राजनयिक उपकरण विशेष रूप से उपयोगी रहे हैं और क्या ये सीमा विवाद को सुलझाने में सफल रहे हैं। इसके अतिरिक्त, चीन-पाक संबंधों का भारत के चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर क्या प्रभाव है, इस मुद्दे पर भी प्रकाश डाला जाएगा। बहुपक्षीय तंत्र एक रचनात्मक अन्तर्क्रिया का मंच रहा है। यह सत्र चीनी सुरक्षा संकट के वक्त भारत किस प्रकार अन्य चीनी फोरम जैसे SCO, BRICS और ADB के साथ तालमेल रखता है, इसका आकलन करेगा। QUAD में भारत के दिलचस्पी भी परिचर्चा का एक उप विषय होगा। ये सभी चर्चाएँ भारत-चीन संबंधों के भविष्य के निर्णायक प्रश्न की नींव रखेंगी।


     

  • विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    विवेक काटजू , पूर्व राजदूत

    प्रशिक्षक

    इस सत्र की परिकल्पना पिछले सत्रों में प्रस्तुत सभी अवधारणाओं को जोड़कर भारत की विदेश नीति की समग्र समझ प्रदान करने के लिए की गई है। इस सत्र में भारत की विदेश नीति और उसके आर्थिक हितों के बीच सहजीवी संबंध स्थापित किया जाएगा। इन मुद्दों को समझने को लिए प्रशिक्षक द्वारा भारत की अन्य

    देशों क साथ ऐतिहासिक महत्वपूर्ण समझौतों की रूपरेखा तैयार की जाएगी। FTA वार्ताओं के प्रति भारत के दृष्टिकोण का विकास इस सत्र एक उप विषयों में से एक होगा जहां UK और EU से जुड़े FTA मामलों पर चर्चा होगी। चर्चा का एक अन्य उप विषय मुख्य घरेलू चर होंगे जो द्विपक्षीय और बहुपक्षीय आर्थिक समझौतों के प्रति भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित करते हैं। अंत में क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर भू- अर्थशास्त्र के विकास के बड़े विषय पर चर्चा की जाएगी।


     

अब हम इस कोर्स के लिए आवेदन स्वीकार कर रहे हैं। आवेदन करने की आखिरी तारीख 20 अप्रैल है| 

आवेदन 10 अप्रैल तक करें कोर्स शुल्क: 2500 ₹/- 

आवेदन 11 - 20 अप्रैल तक करें कोर्स शुल्क: 3000 ₹/-